हींग: जमीन की गहराई से थाली तक, जानिए कैसे बनती है और कहां होती है इसकी खेती

by Real Voice News

भारतीय रसोई का स्वाद अगर किसी चीज से जीवंत होता है, तो वह है “हींग”। इसकी तीखी खुशबू और स्वाद हर व्यंजन में जान डाल देते हैं। हींग (Asafoetida) भारतीय रसोई का एक अहम मसाला है, जो अपने तीखे स्वाद और अनोखी खुशबू के लिए जानी जाती है। इसे “खाने की जान” कहा जाए तो गलत नहीं होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जिस हींग का हम रोज़ाना इस्तेमाल करते हैं, उसका पौधा भारत में नहीं बल्कि विदेशों में पाया जाता था? अब भारत में भी इसकी खेती शुरू हो चुकी है, जो किसानों के लिए एक नई संभावनाओं का द्वार खोल रही है।

हींग कैसे बनती है?

हींग Ferula assa-foetida नामक पौधे के सत्व (रेजिन) से बनाई जाती है। यह पौधा अजवाइन और गाजर परिवार का होता है और शुष्क, ठंडे और ऊंचाई वाले इलाकों में पनपता है।

पौधे की वृद्धि:

हींग का पौधा बीज से तैयार होता है, और इसे परिपक्व होने में लगभग 4 से 5 साल का समय लगता है।

सत्व निकालना:

जब पौधा तैयार हो जाता है, तब इसकी जड़ को हल्का काटा जाता है। इस कटे हुए हिस्से से सफेद रंग का दूधिया रस निकलता है।

हींग का निर्माण:

यह दूधिया रस हवा के संपर्क में आने पर सूख जाता है और धीरे-धीरे गाढ़े भूरे रंग के कठोर टुकड़ों में बदल जाता है। यही टुकड़े असली हींग रेजिन कहलाते हैं।

हींग का पाउडर:

सूखे रेजिन को बारीक पीसकर, थोड़ी मात्रा में आटे या गम अरैबिक के साथ मिलाया जाता है ताकि यह आसानी से घुल सके। इसी मिश्रण को हम बाजार में “कंपाउंडेड हींग” के रूप में खरीदते हैं।

हींग की खेती कहां होती है?

परंपरागत रूप से हींग की खेती भारत में नहीं होती थी। इसके प्रमुख उत्पादक देश अफगानिस्तान, ईरान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान हैं। इन देशों की जलवायु ठंडी, सूखी और ऊंचाई वाली होती है, जो इस पौधे के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

किस देश की हींग की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है?

दुनिया में अफगानिस्तान और ईरान की हींग को सबसे अच्छी गुणवत्ता वाली माना जाता है। वहां के प्राकृतिक वातावरण और मिट्टी की संरचना से प्राप्त रेजिन में तीव्र सुगंध और स्वाद पाया जाता है। इन देशों से हींग भारत में बड़ी मात्रा में आयात की जाती रही है।

भारत में हींग की खेती-

भारत दुनिया का सबसे बड़ा हींग उपभोक्ता देश है, लेकिन अब तक यहां इसका उत्पादन नहीं होता था। पूरा देश लगभग 1,200 से 1,500 टन हींग हर साल विदेशों से आयात करता रहा है। अब स्थिति बदल रही है। सीएसआईआर-आईएचबीटी (CSIR-IHBT), पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) ने 2020 में पहली बार भारत में हींग की बुवाई की थी। इसके तहत लाहौल-स्पीति, किनौर, कुल्लू, चंबा और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में इसे उगाने की शुरुआत की गई है। हींग के पौधों के लिए तापमान 5°C से 25°C के बीच होना चाहिए। वर्षा बहुत कम (शुष्क क्षेत्र बेहतर)। मिट्टी रेतीली-दोमट और अच्छी जल-निकासी वाली

खेती की प्रक्रिया-

इसे विशेष सिंचाई की जरूरत नहीं होती, क्योंकि यह शुष्क क्षेत्र का पौधा है। 4 से 5 साल में पौधा रेजिन देने लगता है। कटाई के लिए जड़ को हल्का काटकर रेजिन निकाला जाता है, जिसे सूखाकर बाजार-योग्य बनाया जाता है।

लाभ और संभावनाएं-

हींग का बाजार मूल्य बहुत अधिक होता है। शुद्ध हींग की कीमत प्रति किलो 10,000 से 30,000 रुपये तक होती है। एक हेक्टेयर भूमि से करीब 200 से 250 किलो तक रेजिन प्राप्त किया जा सकता है।  इस प्रकार, यह फसल किसानों के लिए अत्यंत लाभदायक साबित हो सकती है।

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