वेबसीरीज: मनोरंजन की आड़ में अश्लीलता का बाज़ार!

ओटीटी पर कब लगेगी लगाम?

by Real Voice News

आज के डिजिटल युग में मनोरंजन के साधन बदल गए हैं। जहां पहले लोग सिनेमा हॉल या टीवी पर सीमित सामग्री देखते थे, वहीं अब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) ने हर घर तक असीमित कंटेंट पहुंचा दिया है। वेब सीरीज ने युवाओं में लोकप्रियता जरूर हासिल की है, लेकिन इसके साथ एक गंभीर सवाल उठने लगा है, क्या इन सीरीज में बढ़ती अश्लीलता, हिंसा और अपशब्दों पर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए?

बढ़ती स्वतंत्रता या सीमाओं की अनदेखी?
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को शुरुआत में “क्रिएटिव फ्रीडम” यानी रचनात्मक स्वतंत्रता दी गई थी। इसका उद्देश्य था कि निर्माता बिना किसी बंधन के नई कहानियां कह सकें, लेकिन धीरे-धीरे कई वेब सीरीज ऐसी बनीं जिनमें अश्लील दृश्य, गालियां, नशे के दृश्य और हिंसा को “रियलिस्टिक” दिखाने के नाम पर बार-बार प्रस्तुत किया जाने लगा। परिणामस्वरूप, अब स्थिति यह है कि कई वेब सीरीज परिवार के साथ बैठकर देखना असंभव हो गया है।

सेंसर बोर्ड की अनुपस्थिति
फिल्मों पर जहां सेंसर बोर्ड (Central Board of Film Certification) की निगरानी होती है, वहीं वेब सीरीज और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर ऐसा कोई स्थायी सेंसर नियंत्रण तंत्र नहीं है। वर्तमान में इन प्लेटफॉर्म्स को केवल सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के “Self-Regulation Code” का पालन करना होता है, जो व्यवहार में प्रभावी नहीं दिखता। इसलिए समाज में यह मांग उठ रही है कि ओटीटी कंटेंट के लिए भी सेंसर बोर्ड या निगरानी समिति बनाई जानी चाहिए, ताकि सीमाओं का पालन हो और दर्शकों की संवेदनशीलता सुरक्षित रहे।

समाज और युवाओं पर असर
अश्लील या हिंसक सामग्री का असर सबसे ज्यादा युवाओं और बच्चों पर पड़ता है। लगातार ऐसे दृश्य देखने से किशोरों में संवेदनशीलता कम होती है और अनुचित व्यवहार को सामान्य समझने लगते हैं। वेब सीरीज में प्रयुक्त अपशब्द युवाओं की भाषा पर भी असर डालते हैं। भारतीय समाज में परिवारिक मूल्य और संस्कार महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार की सामग्री इन मूल्यों को कमजोर करती है। कई मनोवैज्ञानिकों का मत है कि जब कोई युवा बार-बार नशे, हिंसा या अनैतिक व्यवहार से जुड़ी दृश्य सामग्री देखता है, तो उसका अवचेतन मन उस व्यवहार को “सामान्य” मानने लगता है।

मनोरंजन बनाम जिम्मेदारी
मनोरंजन जरूरी है, लेकिन समाज के प्रति जिम्मेदारी उससे भी अधिक जरूरी है। निर्माताओं को यह समझना चाहिए कि वे जो कंटेंट बना रहे हैं, वह लाखों युवाओं के विचारों को आकार दे रहा है। यदि वे चाहें तो अपनी कहानियों के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं जैसे महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण, या सामाजिक एकता जैसे विषय।फिल्में और वेब सीरीज केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के चरित्र को गढ़ने का माध्यम भी हैं।

नियंत्रण और समाधान की दिशा

ओटीटी के लिए स्पष्ट सेंसर व्यवस्था: सरकार को एक स्वतंत्र डिजिटल सेंसर बोर्ड बनाना चाहिए जो वेब कंटेंट की निगरानी करे।

वय-सीमा (Age Rating)का सख्त पालन: 13+, 18+ जैसी रेटिंग केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि तकनीकी रूप से लागू होनी चाहिए।

पारिवारिक और सामाजिक सामग्री को बढ़ावा: ऐसे कंटेंट को प्रोत्साहित किया जाए जो पूरे परिवार द्वारा देखा जा सके।

दर्शक जागरूकता: अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों की देखने की आदतों पर ध्यान दें और उचित कंटेंट की दिशा दें।

वेब सीरीज ने मनोरंजन की दुनिया में नई दिशा दी है, लेकिन स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन आवश्यक है। जब तक कंटेंट निर्माताओं और प्लेटफॉर्म्स पर जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक समाज और बच्चों पर इसका नकारात्मक प्रभाव जारी रहेगा। अतः समय आ गया है कि सरकार, समाज और दर्शक तीनों मिलकर यह तय करें कि रचनात्मक स्वतंत्रता का अर्थ संस्कृति का ह्रास नहीं, बल्कि विचारों का विकास होना चाहिए।

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