इंद्रधनुष एक प्राकृतिक प्रकाशीय घटना है, जो आकाश में बरसात या बारिश के बाद सूर्य की रोशनी के कारण बनती है। यह सात रंगों का एक सुंदर चाप होता है, जो हमें प्रकृति की सुंदरता के अद्भुत रूप के रूप में दिखाई देता है।
जब सूर्य की सफेद रोशनी बारिश की बूंदों से होकर गुजरती है, तब यह कई प्रकाशीय प्रक्रियाओं से होकर गुजरती है:
अपवर्तन (Refraction): जब प्रकाश की किरण हवा से पानी की बूंद में प्रवेश करती है, तो उसका मार्ग मुड़ता है।
परावर्तन (Reflection): प्रकाश बूंद के अंदर से टकराकर वापस परावर्तित होता है।
विक्षेपण (Dispersion): प्रकाश सात रंगों में विभाजित हो जाता है क्योंकि अलग-अलग रंगों की तरंगदैर्ध्य अलग-अलग होती है और वे अलग-अलग कोण पर मुड़ते हैं। इस प्रक्रिया से सूरज की सफेद रोशनी लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, जामुनी और बैंगनी रंगों में बंट जाती है। यह रंगीन छटा एक वृत्ताकार धनुष के रूप में दिखाई देती है जिसे हम इंद्रधनुष कहते हैं।
इंद्रधनुष के प्रकार-
इंद्रधनुष मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
प्राथमिक इंद्रधनुष: इसमें सूर्य की किरण एक बार पानी की बूंदों में अपवर्तित होती है और एक बार परावर्तित। इसमें लाल रंग बाहर की ओर और बैंगनी रंग अंदर की ओर होता है।
द्वितीयक इंद्रधनुष: इसमें सूर्य की किरणें दो बार परावर्तित होती हैं, जिससे यह थोड़ा धुंधला और बड़ा दिखाई देता है। इसमें रंगों के क्रम उल्टे होते हैं, यानी बैंगनी बाहर और लाल अंदर।
इंद्रधनुष कब बनता है?
इंद्रधनुष तब बनता है जब बारिश या पानी की बूंदें होती हैं। सूर्य की किरणें साफ और उजली हों। सूर्य की किरणें पीछे से आ रही हों और बारिश सामने हो। अधिकतर इंद्रधनुष सुबह या शाम के समय, जब सूरज का कोण लगभग 40-42 डिग्री होता है, दिखाई देता है।
इंद्रधनुष का वैज्ञानिक महत्व- इंद्रधनुष हमारी प्रकृति में प्रकाश के व्यवहार का एक जीवंत उदाहरण है। यह प्रकाश के अपवर्तन, परावर्तन और विक्षेपण के बीच की क्रिया को समझने में मदद करता है। विज्ञान के दृष्टिकोण से इसे प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण (dispersion of light)के नाम से जाना जाता है।
इंद्रधनुष प्रकृति की एक खूबसूरत और वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण घटना है, जो बारिश और सूर्य के प्रकाश के मिश्रण से बनती है। यह न केवल हमारा मनोबल बढ़ाती है, बल्कि प्रकाश के गुणों को समझने का एक अद्भुत उदाहरण भी प्रस्तुत करती है।